शनिवार, 9 जून 2012

मानव तू बिछाए शूल

धरती पर पड़े  कुदाल  धरा दे  सुन्दर हरी फसल.
वृक्षों की काटो डाल वृक्ष  दे  मिठे मिठे  फल .
मानव तू बिछाए शूल-शूल तेरा  जीना हुआ विफल .
कल कल करती नदिया देखो बहती  जाये रे।
पथिकों की प्यास बुझाये.
जितना भी है पास में उसके सबका सब दे डाला ,
पिया न खुद एक बूँद त्याग का ऐसा नियम निकाला .
मानव तू बिछाए  शूल तेरा  जीना हुआ विफल .

तू सुधि न धरे , कितनी विपदा सही है माँ ने
क्या क्या कष्ट सहे तू क्यू सुधि न धरे.
न जाने कितने दुःख सह कर माँ ने तुझको पाला ,
बड़ा हुआ जब ताक़त  पाकर घर से  उसे निकाला .
मानव तू कर मत भूल वक़्त हाथों से जाये फिसल .
   


मंदिर मस्जिद जाये मंदिर मस्जिद जाये .
राम राम रटता फिरता है राम कहां से पाए .
कोई सतगुरु ढून्ढ ले जो घट में राम दिखाए .
मानव तू सुन ले बात तभी तेरा जीना है सफल .
 मानव तू विछाए शूल-शूल तेरा  जीना हुआ विफल