शनिवार, 24 सितंबर 2011

a four moth old child wept bitterly he told to his mother very clearly. That i am the only hope in your life. So always give me brive. A bottle ful milk thrice in a day. To keep me happy is the only way. Fill my face with lovely kisses. then i will be happy & i will play. T I will smile with all the joys. If my daddy comes with lot of toys. If he doesnt i will weep. I will let neither of you sleep. Please tell my daddy very clearly. That i will continue to weep bitterly.

शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

विरह गीत (इस गीत को कई साल पहले मैंने खुद जब अपनी पत्नी से जुदा था तब महसूस किया था और मैं समझता हूँ की इस विरह या वियोग को हम सभी महसूस कभी ना कभी करते ही हैं. इसी संदर्भ में इस गीत को पड़ेंगे तो अच्छा लगेगा )

आज वहि रिमझिम सावन है काले काले वादल हैं .
लेकिन साजन पास नहीं तो, बे मतलब यह वादल हैं.

प्यासी  अखियाँ चौंक रही हैं कदमो की हर आहट पे .
ना जाने तुम कब आ जाओ मेरे घर की चोखट पे .
इसी आस में जाग रही हूँ अखियाँ नींद से वोझल हैं.
लेकिन साजन पास नहीं तो, बे मतलब यह वादल हैं.

खुद को खूब सजाती हूँ मैं, करती हुं सोलह श्रृंगार.
प्रियतम के स्वागत को प्रतिपल रहती हुं  हर पल तैयार.
पलकों से घर साफ़ किया है, और सजाया आँचल है.
लेकिन साजन पास नहीं तो, बे मतलब यह वादल हैं.

पिछले सावन में मिल जुल कर करते थे हुं नादानी.
कितने सुहाने लगते थे तब वादल बिजली वारिश पानी .
आज उन्ही. यादों में खोया मन वेकल तन व्याकुल है .
लेकिन साजन पास नहीं तो, बे मतलब यह वादल हैं.

क्या तुमको भी याद आती हैं अपने प्यार की सब वातें.
तुमको भी क्या तडपाती हैं विरह की लम्बी रातें .
या फिर केवल हम हि तेरे प्यार में इतने पागल हैं .

आज वहि रिमझिम सावन है काले काले वादल हैं .
लेकिन साजन पास नहीं तो, बे मतलब यह वादल हैं.




बुधवार, 7 सितंबर 2011

बूँदइस कविता में बूँद आत्मा है सागर परमात्मा है और वादल वह पूर्ण सतगुरु है जो आत्मा को परम आत्मा यानी भगवान् से मिला देता है.

नील गगन को छूने की चाहं में एक बूँद ,
सागर की गोद से तोड़ के नाता संग पवन के वह गई .
करुना का सागर बुलाता ही रह गया वह बूँद, हंस के अदा से
खिलखिला के रह गई. एक बूँद........

पवन की नाजुक छुंअन  ने बूँद के कोमल बदन पे
एक जादू सा कर दिया मस्त कर डाला सिरहन ने .
मिलन की आस में पवन के पाश में ,
वह बूँद सिमट के रह गई.
एक बूँद....
पर तभी सूरज निकला वक्त हाथ्हों से निकला ,
बूँद का सुख तो यारों बड़ा छर भंगुर निकला  .
सूरज के ताप में बदली वह भ्हाप में.
वह बूँद झुलस के रह गई.
एक बूँद.
एक रहम दिल बादल ने बूँद को हवा से खींचा ,
अपने दामन में समेटा और ममता से सींचा.
उड़ के वह वादल आया, नदी के ऊपर छाया .
बूँद को  उसने प्यार से नदी पे जा बरसाया  .
ख़ुशी की  तरंग में मिलन की उमंग में
वह संग नदी के वह गई
एक बूँद.....
पत्थरों से टकराई भंवर में चक्कर खाई
न  उसने हिम्मत खोई तनिक  भी न घबराई .
कई जीवों की प्यास से कठिनता से बच पाई
मगर चलती ही रही वह कहीं न रुकने पाई.
इतने में सागर आया बूँद का मन हर्षाया
बूँद ने अपने आप को सागर से था मिलाया .
बूँद बूँद अब नहीं रही वह सागर वन के रह गई ,
एक बूँद ..........