शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

राम या राम चन्द्र


दोस्तों
 
 चाँद को भगवान् राम से यह शिकायत है की दीपवली का त्यौहार अमावस की रात में मनाया जाता है और क्योंकि अमावस की रात में चाँद निकलता ही नहीं है इसलिए वोह कभी भी दीपावली मन नहीं सकता। यह एक मधुर कल्पना है की चाँद किस प्रकार खुद को राम के हर कार्य से जोड़ लेता है और फिर राम से शिकायत करता है और राम भी उस की बात से सहमत हो कर उसे वरदान दे बैठते है आइये देखते है

राम या राम चन्द्र
 जब चाँद का धीरज छुट गया
वह रघुनन्दन से रूठ गया
बोला रात को आलोकित हम ही ने करा है
स्वयं शिव ने हमें अपने  सिर पे धरा है

तुमने भी तो उपयोग किया हमारा है
हमारी ही चांदनी में सिया को निहारा है
सीता के रूप को हम ही ने सँभारा  है
चाँद के तुल्य उनका मुखड़ा निखारा है

जिस वक़्त याद में सीता की ,
तुम चुपके -चुपके रोते थे
उस वक़्त  तुम्हारे संग में बस ,
हम ही जागते होते थे

संजीवनी लाऊंगा ,
लखन को बचाऊंगा ,.
हनुमान ने तुम्हे कर तो दिया आश्वश्त
मगर अपनी चांदनी बिखरा कर,
मार्ग मैंने ही किया था प्रशस्त
तुमने हनुमान को गले से लगाया
मगर हमारा कहीं नाम भी आया

रावण की म्रत्यु से  मै भी प्रसन्न था
तुम्हारी विजय से प्रफुल्लित मन था
मैंने भी आकाश से था प्रथ्वी पर झाँका
गगन के सितारों को करीने से टांका

सभी ने तुम्हारा विजयोत्सव मनाया।
सारे नगर को दुल्हन सा सजाया
इस अवसर पर तुमने सभी को बुलाया
बताओ मुझे फिर क्यों तुमने भुलाया
क्यों तुमने अपना विजयोत्सव
 अमावस्या की रात को मनाया

अगर तुम अपना उत्सव किसी और दिन मानते
आधे अधूरे ही सही हम भी शामिल हो जाते
मुझे सताते है , चिड़ाते है लोग
आज भी दिवाली अमावस में ही मानते है लोग

तो राम ने कहा, क्यों व्यर्थ में घबराता है ?
जो कुछ खोता है वही तो पाता है
जा तुझे अब लोग सतायेंगे
आज के सब तेरा मान ही बढाएंगे
जो मुझे राम कहते थे वही ,
आज से रामचंद्र कह कर बुलायेंगे

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